कई बार पॉजिटिव थिंकिंग के पॉजिटिव रिजल्ट देखने के बाद भी हम अपनी निगेटिव थिंकिंग को दोष न देकर कहते हैं ….
धन प्राप्ति के लिए घर की भाग्य Vs कर्म इस दिशा में रखें लक्ष्मी यंत्र
क्या राम और कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार नहीं हैं?
ऐसा नहीं है, आप कर्म ही वो करते हो जो आपके भाग्य में लिखा होता है, इसका आपको पता नहीं चलता,आपको पता भी नहीं होता कि अगले एक घंटे में आप क्या सोचोगे, और आप ने आज जो सोचा है उसका नतीजा कैसा होगा,आप पहली बार कर्म करके असफल हो जाओगे या दस बार कर्म करने पर कामयाब होगे, ये भाग्य ही निर्धारित करता है,क्या आपको मालूम है कि दो महीन बाद आप कौन सा कर्म करोगे या आपको कौन सा कर्म करना पडेगा, कोई अचानक आप को मिल जाएगा जो या तो आपकी ज़िन्दगी बदल देगा या नुक्सान कर देगा,कितनी बार हम ये सोचते हैं कि ओहो ये बात मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है, कर्म अपने आप में सही है, लेकिन आप कर्म भी उतना ही कर पाते हो जितना आपने भाग्य में लिखा है, जैसे आप रोटी उतनी ही खा पाते हो जितना भगवान् ने आप को पेट दे कर भेजा है.
विनोद काम्बली और सचिन को ही ले लें….दोनों एक जैसे मेहनती थे पर भाग्य ने एक को कहाँ पहुंचा दिया और दुसरे को कहाँ छोड़ दिया.
हर साल लाखों युवा हीरो बनाने मुंबई जाते हैं, पर क्या हेमशा वही हीरो बनता है जो सबसे मेहनती होता है….
उन्होंने मुझे देखा और पुछा ‘आप बड़े ही उत्सुक से प्रतीत होते हो, क्या पहली बार यहां आये हो?
लोगों से जुड़ने का प्रयास किया
हर प्राणी का भाग्य एवं कर्म का परिणाम भिन्न होता है - स्वरभानु नामक राक्षस ने भी समुद्र मंथन में अपना योगदान दिया था, जब वह देवता का रूप धारण कर छल से अमृत पी रहा था, इस कर्म का परिणाम यह निकला कि मोहिनी रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से स्वरभानु नामक दैत्य के दो टुकड़े हो गए, अमृत पीने के कारण वह दैत्य मर तो नहीं पाया, पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सिर राहु के रूप में एवं शेष धड़ केतु के रूप में आज भी विद्यमान हैं। ज्योतिष शास्त्र में राहु-केतु छाया ग्रह हैं, भले ही इनका भौगोलिक अस्तित्व नहीं है, परन्तु प्रभाव अवश्य उत्पन्न करते हैं। प्रत्येक प्राणी कर्म के बंधन से बंधा हुआ है, कर्म करने के बाद फल किस रूप में आएगा, फल परिणाम शुभ होगा अथवा अशुभ, यह सब भाग्य की गति पर निर्भर है, जिसे ज्योतिष शास्त्र में महादशा, अन्तर्दशा, ग्रह गोचर के माध्यम से जाना व समझा जाता है।
मैं-जी हां, गीता में भी लिखा है कि जो जैसा करता है, उसे वैसा ही मिलता है।
मैं थोड़ा सोच में पड़ गया, पर फिर हिम्मत कर के बोला मैं लोगों की उनके अच्छे वक्त में मदद करना चाहता हूं।
हममें से कई लोग मानते हैं कि हमारे भाग्य भगवान द्वारा लिखे गए हैं या वे पहले से ही लिखे हुए हैं और उन्हें बदला नहीं जा सकता। लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से पहला सबक यह मिलता है कि हम भगवान के बच्चे हैं। और यदि यह सत्य है, तो हमारे लिए लिखे गए भाग्य समान और न्यायसंगत होने चाहिए। परंतु आज, हम समझते हैं कि लोगों के जीवन और उनके भाग्य न तो समान हैं और न ही परिपूर्ण। तो, हमारे भाग्य के लिए कौन जिम्मेदार है? हम खुद हैं।
पर ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं होती कि सफलता या असफलता इंसान के कर्म से निर्धारित होती है, यानी कर्म हमेशा भाग्य से बड़ा होता है.
कर्म की मुख्य अवधारणा यह है कि सकारात्मक कार्य से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है और नकारात्मक कार्य का परिणाम नकारात्मक होता है। इन दोनों के बीच कारणिक संबंध व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति को शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक दृष्टि से प्रतिदिन निर्धारित करता है।
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